जैविक खेती क्या है? जैविक खेती की पूरी जानकारी | Organic farming in Hindi

Organic farming in Hindi, अगर आप जानना चाहते हैं की जैविक खेती किसे कहते हैं, और जैविक खेती कैसे की जाती है, जैविक खेती क्यों जरूरी है, तो कृपया पूरा लेख पड़ें। जैविक खेती के बारे में तो आपने कहीं न कहीं जरूर सुना होगा, क्युकी बीते कुछ सालों से जैविक खाद्य पदार्थों का चलन काफी तेजी बड़ा है।

सरकार ने भी जैविक खेती को लेकर पूरे देश भर में काफी अभियान चलाए हुए हैं कई कृषि अधिकारी गांव गांव जाकर लोगों को जैविक खेती के बारे में जागरूक कर रहे हैं। हमारे देश का एक राज्य सिक्किम एक ऐसा राज्य बन गया है जो पूर्ण रूप से जैविक खेती करने वाला राज्य है।

खेती के सबसे फायदेमंद तरीकों में से एक मल्टी लेयर खेती भी है क्यूंकि मल्टी लेयर खेती के माध्यम से देश भर में लाखें किसान खेती में कई गुना ज्यादा मुफा कम रहे हैं। साथ ही मशरूम की खेती भी किसानों के लिए काफी अच्छी है क्युकी इसे बंजर जमीं पर भी किया जा सकता है।

जैविक खेती क्या है?

कई लोगों का ऐसा मानना है कि जैविक खेती एक नया तरीका है जबकि यह बात पूरी तरह से सच नहीं है। हमारा देश हजारों सालों से कृषि प्रधान देश रहा है, जब लोग कपड़े पहनना भी नहीं जानते थे तब से हमारे देश के लोग खेती करते आ रहे हैं। ऐसे हजारों उदाहरण मिल जाएंगे जिन से यह साबित हो जाएगा कि बीते समय में भारत दुनिया का सबसे उन्नत देश था।

जैविक खेती का अर्थ है सूक्ष्म जीवों पर आधारित खेती, यह खेती प्रकृति और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए की जाती है। जैविक खेती परंपरागत खेती का ही एक आधुनिक स्वरूप है, परंतु यह पूरी तरह से नया तरीका बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि इसमें परंपरागत खेती की तरह ही गोबर गोमूत्र और प्राकृतिक अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग किया जाता है।

इस प्रकार की खेती में रासायनिक खाद कीटनाशकों का उपयोग ना करके गोबर, कम्पोस्ट, गोमूत्र जीवाणु खाद का उपयोग करते हैं। फसल अवशेष को खाद के रूप में प्रयोग करना और अन्य प्राकृतिक खनिजों को पोषक तत्व के रूप में उपयोग किया जाता है।

जैविक खेती कैसे की जाती है

जैसा कि हमने जाना, जैविक खेती में किसान केमिकल का इस्तेमाल न करके केवल प्रकृति खाद का उपयोग पौधों को पोषण देने के लिए करते हैं। जैविक खेती द्वारा जिन फलों व सब्जियों को उगाया जाता है उनका स्वाद काफी ज्यादा अच्छा होता है। स्वाद के साथ ही जैविक फल व सब्जियां श्वास्थय के लिए भी बहुत फायदेमंद होती हैं।

इतिहास में की गई गलतियां

देश में आजादी के समय खेती में कम पैदावार होने से अनाज विदेशों से लाया जाता था लेकिन जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ अनाज की कमी होने लगी। फिर 1967-1968 मैं हरित क्रांति का दौर चला आपको पता ही होगा आधुनिक तकनीक, हाइब्रिड बीज, खाद गुणवत्ता के उपयोग से धरती मानो सोना उगले लगी थी इसी बीच भारत में अन्न उत्पादन में अद्भुत वृद्धि हुई। वहीं से रासायनिक खाद, कीटनाशक, जहरीले केमिकल का कारोबार अधिक से अधिक बड़ गया।

अनाज एवं उपज प्राप्त करने के लिए रासायनिक उर्वरकों कीटनाशक का अंधाधुन उपयोग किया जाने लगा जिसके चलते भूमि बंजर होती गई। कीटनाशक के चलते मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी आ गई। मिट्टी में पाए जाने वाले अनेक उपयोगी जीवाणु नष्ट होते गए। और देश में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों से मानव एवं पशुओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के ऊपर भी बहुत बुरा असर पड़ा।

जैविक खेती क्यों जरूरी है?

अब मानव एवं पशुओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण को बचाए रखने के लिए मिट्टी की उपज और उर्वरक शक्ति बढ़ाने के लिए जैविक खेती जरूरी है। जैविक खेती का उद्देश्य रसायनिको का उपयोग ना करके जहर मुक्त खेती करना है। अगर यूरिया DAP से ही पौधों की अच्छी वृद्धि संभव होती तो अब तक सारे जंगल सुख जाते, क्योंकि वहां तो कोई खाद डालने नहीं गया।

मिट्टी और प्रकृति में वह सारे तत्व मौजूद हैं जो पौधों को मिलने चाहिए। जैविक खेती में प्राकृतिक घटकों, जैसे गोबर गोमूत्र की खाद, गोबर गैस से निकले बचे हुए मलबे का खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। किसान भाई गोबर की मदद से उच्च गुणवत्ता की खाद तैयार कर सकते हैं। गोबर खाद के अलावा गोमूत्र से तरल जीवामृत, घन जीवामृत, आदि अत्यंत आवश्यक घटक घर पर ही तैयार किए जा सकते हैं। और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ उपज में वृद्धि की जा सकती है।

केंचुआ खाद (VermiCompost) का भी उपयोगी बहुत खेती के लिए फायदेमंद साबित होता है। कीट नियंत्रण के लिए गोमूत्र और वनस्पतियों की पत्तियों से कीटनाशक भी तैयार कर किया जाता है। इसका प्रयोग हानिकारक कीटों को फसलों से दूर रखता है। छाछ और तांबे की मदद से जैविक फफूंद नाशक भी बना सकते हैं। तिलहन, दलहन के बीजों को गोमूत्र में गला कर माइक्रो न्यूट्रिशंस भी बना सकते हैं।

गोबर की खाद के फायदे

हमें अपने खेत में पके गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए ना कि कच्चे गोबर की खाद का। पूर्ण रूप से तैयार हो चुके खाद के अवशेष का रंग ब्राउन हो जाता है और इसके अवशेष ठोस ना रहकर पाउडर में बदल जाते हैं। कंपोस्ट के प्रयोग से मिट्टी में भौतिक सुधार होता है, जिससे मिट्टी भुरभुरी होजती है और उसमें खुली हवा का संचार अच्छा होने से पौधे की जड़ों का विकास होता है।

मिट्टी में जल धारण की क्षमता बढ़ती है, हल्की रेतीली मिट्टी और उपजाऊ मिट्टी की संरचना में भी सुधार होता है और मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़ती है। गोबर की खाद के प्रयोग से फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों के साथ-साथ कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं। मिट्टी में मित्र जीवाणुओं की संख्या बढ़ती हैं इसका ज्यादा मात्रा में प्रयोग करने का भी कोई नुकसान नहीं है और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है।